पीर से इश्क और अदब होना लाज़मी है



   तमाम सूफियाए इकराम इस बात पर जोर देते है की बैत होने के बाद मुरीद के दिल में अपने पीर के लिए मोहब्बत और अदब के जज़्बात मौजज़न हो और मुरीद अपने पीर से वालहाना मोहब्बत करने वाला हो..
इसलिए बुज़ुर्ग फरमाते हैं की तसव्वुफ़ सारा का सारा अदब है और तसव्वुफ़ का मदार इश्क है और इश्क में अव्वल ता आखिर अदब दरकार है ..अगर मुरीद के दिल में पीर की हैबत नहीं तो गोया उसके दिल में पीर की अजमत नही .. अजमत नही तो इश्क नहीं और अगर इश्क नही तो फैज़ से महरूम रहेगा |

 
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